Jun 6, 2010

तुम कह दो

बाहों में भले ही वो,
कितने तूफ़ान समेटे हो
उम्मीद की कश्ती को,
चाहे कितनी ही बार बिखेरे हो
तुम कह दो तो ये सागर अपार नहीं लगता
तूफानों से लड़ना यूँ बेकार नहीं लगता

सपनो से भी मेरे वो,
कितनी ही दूरी पर बैठा हो
छू लेने की कोशिश पर,
"नादान" कह के हँस देता हो
पर तुम कह दो तो क्षितिज पहुँच के पार नहीं लगता
सपनो का पीछा करना भी बिन सार नहीं लगता

कुछ तो जादू- मंतर है तुम्हारे इस विश्वास में
कि इस से बढ़कर तो ये संसार नहीं लगता
हालातों का मुझपर कुछ अख्तियार नहीं लगता
बस तुम कह दो तो ...

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