Jan 11, 2013

परिंदे


इन सर्द रातों में कुछ परिंदे,
शहरों में,
दर बदर भटकते फिरते हैं
कांच की भट्ठियों में जलती आग,
उन्हें गर्मी नहीं देती
ढलता सूरज घरौंदों से,
उन्हें पुकारने की बजाय,
अँधेरी रात का खौफ़ दिलों में भर जाता है

छोड़ कर अपने गाँव चले आये थे जो,
कभी दाने की तलाश में,
या अपने घरों को गुम होता देख,
शहर के अज़गर की सांस में
वो परिंदे गुज़रते हैं अब
इन बर्फानी गलियों से नंगे पाँव
आँखों में एक ही सपना लिए
कि इन कंक्रीट के जंगलों में कहीं,
अपना भी एक घोंसला हो
और पंखों को भटकने अलावा,
ठहरने की भी आज़ादी मिले