Feb 22, 2013

अभी ज़रा देर पहले ही तो खामोश बैठा था
लगता था दुनिया की सारी चीखें भी
इसे सोच से जगा नहीं पाएंगी,
चाहे कितनी भी आंधियां आयें या जाएँ
इसकी नीली आँखों में कहीं खो कर रह जाएँगी,
फिर एकाएक किसी को पुकार कर टूट सा गया
और बहने लगी धारें चमकती हुयी आँखों से,
ये आसमां भी आजकल बहुत 'मूडी' हो गया है,
इस पर भी तुम्हारी संगत का असर आ रहा है...



Feb 9, 2013

शायरी

एक ठहरे हुए पल में रुक नहीं पाती है जो,
और बेचैन सी ढूंढती रहती है मायने
कभी पुरानी डायरी के पन्नों में,
और कभी कैलेंडर कि अगली तारीखों में
ये शायरी भी जिंदगी जैसा ही रोग है,
जो कभी मुकम्मल तो नहीं होती
पर पूरी ज़रूर होती रहती है...