Mar 5, 2014

लफ़्ज़ों का शोर

आज रात के दामन में हसीं ख्वाब कुछ ज़्यादा ही थे,
इतने ज़्यादा की आँखों में उन्हें समा लेने पर,
पलकों से छलक जाने का डर महसूस होता था
इसीलिए जागता रहा मैं रात भर...
उन ख्वाबों को खुली आँखों के सामने लेकर,
न वो कुछ बोलते थे और न मैं कुछ कहता था
पर दोनों एक दूसरे के हालात खूब समझते थे

इस खूबसूरत खामोश लम्हे को
जब मैंने लफ़्ज़ों में क़ैद करने की कोशिश की
तब रात की ख़ामोशी में अल्फाजों की ज़हर घुल गयी
और वो पूरी सी दिखती नज़्म अधूरी रह गयी...

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