Mar 5, 2014

दीवाना

ज़िक्र तेरा आ जाएगा लोगों की बातों में कहीं
तो यूँ पेश आयेंगे की नाम तेरा सुना भी नहीं
और जो मेरी बदकिस्मती से तुम कभी सामने आ जाना
तो अपने सपनों के पंखों पर सवार
इस यादों के की इमारत के ऊपर से गुज़र जाना
पर कभी एक पल के लिए भी न उतरना इसके आँगन में
क्योंकि इस घर की छत मेरी आँखों की नमी से कुछ सिली सिली रहती है
ये टपकती तो नहीं पर तुम्हारी शाम की महफिलों के काबिल भी नहीं
इसकी दीवारें मेरे हौसलों की तरह कागज की बनी हैं
जो तुम्हारी एक आवाज़ पर ताश के पत्तों की तरह गिर भी सकती हैं
और इसके दरवाज़े बंद रहते हैं सिर्फ इस ख्याल से,
की कहीं कोई और हवा का झोंका इसकी नीव न हिला दे
तो इसलिए, जो मेरी खबर जानने का जी भी कर जाए अगर
तो लोगों से बस इतना पूछ लेना
कि क्या अब भी इस शहर में कोई दीवाना रहता है..

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